भूपाल नोबल्स संस्थान के संस्थापकों एवं उन्नायकों द्वारा संस्थान हेतु सूक्त वाक्य ‘तेजस्विनावधीतमस्तु’ का चुनाव किया गया। यह अंश कठोपनिषद् के शांतिपाठ से लिया गया है। शांकर भाष्य के अनुसार इसका भावार्थ इस प्रकार है: वह (परमात्मा) हम (आचार्य और शिष्य) दोनों की साथ साथ रक्षा करें। हम दोनों का साथ-साथ पालन करें। हम साथ-साथ विद्या संबंधी सामथ्र्य प्राप्त करे। हम द्वेष न करें और हमारे ( आध्यात्मिक , आधिदैविकव आधिभौतिक) इन विविध तापों की शांति हो। उपनिषद् भाष्य (सानुवाद), गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम खंड, तृ.सं. 1997ए पृ.11 इस मंत्र के पीछे गहरा दार्शनिक बोध निहित है। यह शिक्षा को एक सहयोगी प्रक्रिया मानता है। इसके अनुसार शिक्षक एवं विद्यार्थी की सह-साधना ज्ञानार्जन की नई ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकती है। इसमें ज्ञानरुपी सत्य को सर्वोच्च स्थान दिया गया है तथा शिक्षक को एक पथ प्रदर्शक के रुप में देखा गया है जो विद्यार्थी को मात्रात्मक ज्ञान देकर ही संतुष्ट नहीं हो जाता वरन् उसकी भीतरी शक्ति को जागृत करता है ताकि ज्ञान साधना के मार्ग पर वह अपने शिक्षक से भी आगे जा सके। कहना न होगा कि यह भारतीय ज्ञानसाधना की ऊध्र्वगामी दृष्टि का परिचायक है। इस सूक्त वाक्य के आलोक में विद्यार्थी ज्ञानरुपी ज्योति को स्वयं अपने भीतर प्रज्वलित करने का प्रयास करेंगे, ऐसी अपेक्षा है।
The concept of the current logo is based on a line from the Sanskrit shloka which is the motto of Bhupal Nobles' University : Tejasvi navadhitamastu. This line, derived from the peace invocation of several Upanishads, translates as: “Let our (the teacher and the taught) learning be radiant”.
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Om Saha Navavatu, Saha Nau Bhunaktu Saha Veeryam Karvaavahai Tejasvi Naavadhitamastu Maa Vid Vishaa Va Hai Aum Shaantih, Shaantih, Shaantih
Let us together be protected and let us together be nourished by God's blessings / Let us together join our mental forces in strength for the benefit of humanity /Let our efforts at learning be luminous and filled with joy, and endowed with the force of purpose/Let us never be poisoned with the seeds of hatred for anyone / Let there be peace and serenity in all the three universes.
Invocation from Taittiriya Upanishad